पिंकू का जन्मदिन

कहानीकार :संदीप कपूर

पिंकू एक बहुत प्यारा खरगोश था । आज वह बहुत खुश था... और खुश क्यों न होता आज उसका जन्मदिन जो था। पिंकू को जन्मदिन पर अपने दोस्तों से अनेक तोहफ़े मिले, लेकिन से सबसे ज्यादा पसंद आया, अपने दोस्त चिक्की खरगोश का तोहफा । जासूसी में उसकी रुचि जानकर चिक्की ने उसे एक लेंस तथा दूरबीन दी थी ।

एक दिन की बात है । पिंकू मजे से नदी के किनारे बैठा दूरबीन से आसपास के दृश्य देख रहा था । उसे बहुत दूर के दृश्य भी ऐसे लग रहे थे, जैसे वह आगे बढ़कर उन्हें छू लेगा ।

चारों तरफ़ हरियाली थी । ठंडी हवा के झोंकों में पिकू गुनगुनाने लगा-

‘कितना प्यारा वन हमारा, जग से सुंदर सबसे न्यारा ।
यह वन ही अपना सब कुछ, सब जीवों का यही सहारा ।।’

उसने दूरबीन से दूसरी दिशा में देखा तो चौंक उठा । उसने दुबारा दूरबीन से देखा । काफी दूर किसी पेड़ पर एक मोटा अजगर पेड़ की शाखा पर बने किसी चिड़िया के घोंसले की तरफ बढ़ रहा था। पिंकू को घोंसले के ऊपर मंडराती चिड़िया साफ दिखाई दे रही थी ।

‘बेचारी चिड़िया उस अजगर का मुकाबला कैसे करेगीं ? मुझे फौरन वहाँ पहुँचन चाहिए ।’ यह सोचकर पिंकू वहाँ जा पहुँचा ।

पेड़ के समीप पहुँचने पर पिंकू को घोंसले में से चिड़िया के बच्चों के चीखने की आवाज़ साफ सुनाई देने लगी थी । चिडिया पंख जोड़ते हुए अजगर से विनती कर रही थीं- “अजगर भइया, अजगर भइया, तुम ऊपर क्यों आते हो । हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा, जो तुम हमें सताते हो ? हमारे बच्चों पर कुछ तो तरस खाओ ।” लेकिन मक्कार अजगर पर उनकी प्रार्थना को कोई असर नहीं हो रहा था । वह अब घोंसले से कुछ ही दूर रह गया था ।

‘अब मैं क्या करूँ ? इस अजगर के सामने मेरी क्या बिसात?’ पिंकू कोई तरकीब सोचने लगा । जल्द ही उसके दिमाग में एक विचार आ गया । उसने झटपट अपनी जेब से उपहार में मिला लेंस निकाला । फिर उसे सूरज के सामने करके लेंस के द्वारा सूरज की किरणें पेड़ के नीचे पड़े सूखे पत्तों तथा घासफूस के ढेर पर फेंकते हुए गाने लगा-

‘जल्दी-जल्दी आग जल तू
इस अजगर का काल बन तू ।’

उसकी तरकीब काम कर गई । पत्तों और घासफूस का वह ढेर जल उठा और उससे लपटें उठने लगीं । पेड़ के नीचे आग जलती देख अजगर घबरा गया । चिड़ियों के बच्चों को छोड़कर वह अपनी जान बचाने की फ़िक्र करने लगा । उसका शरीर आग की आँच सह नहीं पाया और वह ‘धड़ाम’ से पेड़ के नीचे जलते पत्तों के ढेर पर गिर गया। उसका बदन कई जगह से बुरी तरह झुलस गया । वह दर्द से कराहते हुए बोला-

‘उफ्फ, मुसीबत ये कैसी आई, झुलस गया है शरीर सारा
जान बची तो लाखों पाये, यहाँ न आऊँगा कभी दोबारा ।’

और वह घिसट-घिसटकर वहाँ से दूर चला गया । यह देखकर चिड़िया पेड़ से नीचे आ गईं और पिंकू के साहस और बुद्धिमानी की प्रशंसा करने लगीं । चिड़िया के बच्चे भी ‘चीं-चीं, चीं-चीं....’ करते हुए पिंकू का धन्यवाद करने लगे ।

कुछ देर तक चिड़ियों से बातें करने के बाद पिंकू वापस अपने ठिकाने की ओर चल पड़ा । अब उसके कदमों में नया साहस तथा दिल में नई स्फूर्ति पैदा हो गई थी । उसे चिक्की द्वारा दिये गये इस उपहार पर गर्व महसूस हो रहा था ।


(संदीप कपूर)

1 comments:

Several tips said...

ஜனம் தின் ஆசீர்வாத்