वाह चुहिया !


वाह चुहिया का नहीं जवाब ।

खदर -बदर कर भाग रही है
इधर–उधर से झांक रही है
मन मर्जी की मालिक जैसे
हम हों नौकर, यही नवाब ।

टीवी से सोफे पर भागी
ऊपर–नीचे दौड़ लगा दी
तुम क्या इससे जीत सकोगे
है हिम्मत तो भिड़ो जनाब ।

महक सूँघकर दौड़ी आती
कागज–कपड़ा सब ले जाती
यहाँ छुपाती ,वहाँ छुपाती
खाती रोटी और कबाब ।

रात–रात भर पढ़ना पड़ता
जिस किताब का पन्ना -पन्ना
तूने उसे कुतर ही डाला
तुझे मिलेगा खूब सवाब ।

अटकाया रोटी का टुकड़ा
उसमें थोड़ा घी भी चुपड़ा
मगर गंध चूहेदानी की
समझा देती सभी हिसाब ।

वाह !चुहिया का नहीं जवाब !

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